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परियोजना के उद्देश्य:-
उत्तराखण्ड राज्य के चयनित सूक्ष्म जलागम क्षेत्रों में ग्राम समुदायों की सहभागिता के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग की दक्षता तथा बारानी कृषि (वर्षा आधारित कृषि) की उत्पादकता में वृद्धि करना।
परियोजना घटक/गतिविधियां:-
परियोजना के अन्तर्गत चार प्रमुख घटक हैं:-
घटक-1 सामाजिक जागरूकता तथा सहभागी जलागम नियोजन:-
  1. ग्राम पंचायत जलागम विकास योजना के निरूपण तथा समन्वय के अन्तर्गत प्रभावी भू-उपयोग में वृद्धि, जल संसाधन प्रबन्धन, कृषि क्षेत्र विकास तथा आय-अर्जन हेतु गतिविधियों के क्रियान्वयन के लिए ग्राम समुदाय का क्षमता विकास एवं जागरूकता में वृद्धि।
  2. सूक्ष्म जलागम उपचार योजना तैयार करना।
घटक-2 जलागम उपचार तथा बारानी क्षेत्र विकास
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित दो उप घटक सम्मिलित हैं:-
2.1 जलागम उपचार तथा जल स्रोतों के दीर्घावधिक प्रबन्धन की गतिविधियां
इस घटक के अन्तर्गत गतिविधियों का क्रियान्वयन ग्राम पंचायत स्तर पर जल एवं जलागम प्रबन्ध समिति द्वारा किया जायेगा। जल स्रोतों के दीर्घावधिक प्रबन्धन हेतु जल एवं जलागम प्रबन्ध समिति/वन पंचायत/उपभोक्ता समूह/राजस्व ग्राम समिति द्वारा बहुउद्देशीय दल की सहायता से अलग से योजना तैयार करेगी।
  1. ग्राम पंचायत जलागम विकास योजना के निरूपण तथा समन्वय के अन्तर्गत प्रभावी भू-उपयोग में वृद्धि, जल संसाधन प्रबन्धन, कृषि क्षेत्र विकास तथा आय-अर्जन हेतु गतिविधियों के क्रियान्वयन के लिए ग्राम समुदाय का क्षमता विकास एवं जागरूकता में वृद्धि।
  2. कृषि टैरेस तथा खेतों की वानस्पतिक मेंढों की मरम्मत।
  3. ग्रामीण सड़क, छोटे पुलध्पुलिया का जीर्णोद्धार।
  4. मृदा संरक्षण संरचनाओं का निर्माण/पुनरूद्धार, (यथा-रीचार्ज पिट, तालाब वानस्पतिक संरचनाऐं, वानस्पतिक ट्रेंच, स्टोन तथा क्रेट वायर चैक डैम, रिटेनिंग वाल, स्पर तथा निकास नालिकायें)
  5. घास रोपण (नेपियर तथा स्थानीय घास प्रजातियां।
  6. वानिकी गतिविधियों (वृक्षारोपण तथा नर्सरी स्थापना)।
  7. वैकल्पिक उर्जा स्रोतों के प्रयोग को प्रोत्साहन (यथा-बायो गैस संयत्र, सोलर कुकर, घराट तथा पिरूल से कोयला निर्माण)
2.2 बारानी क्षेत्र (वर्षा आधारित क्षेत्र) विकास
इस उप घटक के अन्तर्गत प्रदर्शन गतिविधियांे का क्रियान्वयन जलागम प्रबन्ध निदेशालय द्वारा बहुद्देशीय दल के माध्यम से किया जायेगा।
  1. बारानी तथा सिंचित क्षेत्रों के लिये उन्नत बीज उपलब्ध कराया जाना तथा विकसित नवीन कृषि तकनीकों का प्रदर्शन।
  2. बारानी क्षेत्रों में वर्षा जल संरक्षण, जलवायु अनुकूल पद्धत्तियों तथा समेकित फसल प्रबन्धन तकनीक को प्रोत्साहन।
  3. सिंचित क्षेत्रों में फसल विविधीकरण के अन्तर्गत उच्च उत्पादक बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन, अभिनव फसल तकनीकों का अंगीकरण, पालीहाऊस व पालीटनल की स्थापना।
  4. सिंचित मक्का, गेंहूँ व अन्य फसलों की उत्पादकता वृद्धि तथ जैव उर्वरकों व वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग आदि गतिविधियों का प्रोत्साहन।
  5. उद्यानिकी व पशुधन क्षेत्रों में उद्यान विकास / पुनरोद्धार, चारा उत्पादन तथा पशु नस्ल सुधार गतिविधियां।
घटक -3 आय अर्जन के अवसरों में वृद्धि
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित तीन उप घटक सम्मिलित हैं:-
3.1 कृषि व्यवसाय सहयोग
इस उपघटक के अन्तर्गत तीन वर्षों हेतु कृषि उत्पादन में वृद्धि, उसके मूल्य संवर्द्धन तथा विपणन हेतु एक कृषि व्यवसाय सहायता संगठन (ABSO) को जलागम प्रबन्ध निदेशालय द्धारा अनुबन्धित किया जायेगा।
  1. लक्षित कृषकों को कृषि व्यवसाय योजना के विकास हेतु सहयोग प्रदान करना, तथा सप्लाई चेन के विकास हेतु इनपुट दिया जाना (यथा गुणवत्ता युक्त बीज उत्पादन)
  2. इच्छुक कृषक समूह तथा उनके कृषक संघों के साथ-साथ जल उपयोग कर्ता समूहों का गठन।
  3. विपणनोन्मुखी प्रसार सेवायें तथा विपणन सहयोग।

3.2 निर्बल वर्गों को वित्तीय सहायता
  1. भूमिहीन, निर्बल, निराश्रित महिला तथा घुमन्तु समुदाय को स्वरोजगार गतिविधियों हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना।

3.3 ग्राम्या-1 की कृषि व्यवसाय से सम्बन्धित गतिविधियों का सुदृढीकरण एवं क्षमता विकास:
  1. ग्राम्या-1 में गठित कृषक संघों की व्यवसायिक योजना तथा प्रबन्धन क्षमता को सुदृढ़ीकरण।
घटक-4 जानकारी प्रबन्धन तथा परियोजना समन्वयन
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित दो उप घटक सम्मिलित हैं:-
4.1 जानकारी प्रबन्धन
  1. लक्षित स्थानीय संस्थाओं (ग्रा0पं0, जल उपभोक्ता समूह, इच्छुक कृषक समूह), राज्य स्तरीय हितभागी (गैर सरकारी संगठन, विश्वविद्यालय, शोध संस्थान) तथा भारत सरकार द्धारा सहायतित कार्यक्रमों (आई.डब्ल्यू.एम.पी., मनरेगा) को सम्मिलित करते हुए प्रशिक्षण एवं प्रसार सम्बन्धी गतिविधियां।
  2. सहभागी जलागम विकास, प्राकृतिक संसाधन संरक्षण , बारानी कृषि विकास तथा कृषि व्यवसाय विकास हेतु जानकारी के स्रोत के लिये जलागम प्रबन्ध निदेशालय में एक सेन्टर आफ एक्सीलेंस की स्थापना।
  3. ग्राम्या-2 के विभिन्न हितभागियों के मध्य सूचना तथा शिक्षा का आदान-प्रदान।
  4. अनुश्रवण, मूल्यांकन एवं सीख।
4.2 परियोजना समन्वयन
  1. परियोजना गतिविधियों के प्रभावी अनुश्रवण तथा सूक्ष्म जलागम स्तर पर विस्तृत आधारभूत आंकडों का एक डाटाबेस तैयार करने हेतु प्रबन्धन सूचना तंत्र (एम0आई0एस0)की स्थापना।